मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन । चंदन भले न लगाते हों,
किन्तु मुफ्त का मिले, तो घिसने में क्या बुराई है । यह हमारे समाज का एक खास
दर्शन है और इसके दर्शन-लाभ के लिए हम सदा लालायित रहते हैं । हमारे यहाँ एक कहावत
भी प्रचलित है कि मुफ्त का जूता भी आगे बढ़कर अंगीकार कर लेना चाहिए । एक तो इससे
सहनशीलता की परीक्षा हो जाती है । दूसरा, कुछ अनुभव भी मिल जाता है । जब बन्दा
लगातार इस राह पर चलने लगता है, तो फोकटगिरी के उच्च प्रतिमान खुद-ब-खुद उसके
चरणों को चूमने लगते हैं ।
किसी और समाज में
मुफ्त पर लट्टू होना भले ही कमजोर चरित्र की निशानी हो, पर हमारे सामाजिक चरित्र
को इससे मजबूती मिलती है । हमारी इसी मजबूती को आज का बाजार अपना आधार बनाता है । वह
उन सारी चीजों को सुगमतापूर्वक बेच देता है, जिनकी उपयोगिता हमारे लिए न के बराबर
होती है । वह उन चीजों को भी डंके की चोट पर बेच देता है, जो हमारे स्वास्थ्य से
खुल्लम-खुल्ला खिलवाड़ करती हैं ।
बन्दा हाथ-पैर
तोड़कर टीवी देख रहा होता है कि तभी एक गाड़ी का विज्ञापन आता है । इस त्यौहार खूब
कीजिए सैर-सपाटा । आधी रात तक मौज-मस्ती कीजिए । अपने लिए, अपनों के लिए ढेर सारी
खरीदारी कीजिए । खुली हवा में जमकर घूमिए और जीवन का पूरा लुत्फ उठाइए । तभी एक
दूसरा विज्ञापन नमूदार होता है । ई-शॉपिंग का है जमाना, आपको कहीं नहीं है जाना ।
कहीं जाने के नाम पर नहीं खोना आपा, समझ गये न बिट्टू के पापा । बेचारा दर्शक, एक
उसे आगे खींच रहा है, तो दूसरा उसके पैरों में लंगड़ी मार रहा है । जाएं तो जाएं
कहाँ...
अभी इसी
उधेड़बुन में डूबा है कि एक और धमाका होता है । शानदार ऑफर !...ऐसा मौका फिर
कहाँ मिलेगा...एक आईफोन पर एक आईफोन बिल्कुल मुफ्त । आईफोन बन्दा अफोर्ड नहीं कर
सकता, पर मुफ्त वाला झटका भी तो चार सौ चालीस वोल्ट का है । वह
अड़ोसियों-पड़ोसियों नाते-रिश्तेदारों की चौखट पर नाक रगड़ता है और मुफ्त को अपना
बना लेता है ।
अनगिनत चीजें
हैं, जिनको मुफ्त में पाने की ख्वाहिश उसे बीच बाजार में खड़ा कर देती है । बजट स्वाहा
होने से कई अनिवार्य जरूरतें भी स्वाहा हो जाती हैं । बन्दा फोकटगिरी के चक्कर में
नाच रहा है...फकीर होकर नाचना भी उसे मंजूर है ।
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