वे कोई ऐरे-गैरे बाबा नहीं हैं, हमारे-आपके
घरों के बाबाओं की तरह । वे देश के बाबा हैं, इसीलिए खास हैं । मामूली घरों के
बाबा भी प्यार-दुलार तो खींच ही लेते हैं । खिलौनों से खेलना और जी भर जाए, तो उसे
तोड़ देना उनका हक बनता है । तो क्या बाबा का हक नहीं बनता कि वे भी खेल खेलें ।
उनके लिए तो पूरा देश ही खिलौना है ।
हमें आभार मानना चाहिए उन साहेबान का,
जिन्होंने देशवासियों को बताया कि अपनी माँ के अतिरिक्त देश की भी एक माता होती है
। उन्हीं की बदौलत देशवासी देश की माता को जान-समझ पाए, अन्यथा वे तो विस्मृति और
अज्ञानता के गर्त में डूबे हुए थे । देश के बाबा होंगे, तो क्या देश की माता का
अस्तित्व नहीं होगा ?
पार्टी या देश का सर्वोच्च पद तब तक अपने को
धन्य नहीं मान सकता, जब तक बाबा उस पर सुशोभित न हों । सोचने वाली बात ये है कि उस
पद के लिए ऐसे कौन से गुण हैं, जो बाबा
में नहीं हैं । बाबा तो सर्वगुणसम्पन्न हैं । सबसे पहले तो वे उस परिवार से आते
हैं, जिसकी सेवा यह देश पिछले साठ सालों से लेता आया है । सेवा के मेवा पर उन्हीं
का हक है । वे झूठ बोलने में उस्तादी ग्रहण करने के निकट हैं । झूठ बोलना राजनीति
का खास स्तम्भ है । उनकी दृढ़ता कमाल की है । एक बार मुँह से सूट-बूट निकल गया, तो
उस पर युगों तक अटल बने रहेंगे । अज्ञातवास में जाने की उन्हें महारत हासिल है ।
वे अक्सर अपने लोगों को बीच मझधार में छोड़ विदेशी अज्ञातवास में चले जाते हैं,
शारीरिक और मानसिक शक्ति संग्रहित करने । यहाँ यह आरोप प्रथम-दृष्टया सही नजर आने
लगता है कि बाबा को ब्रिटेन की नागरिकता हासिल है ।
बाबा पर उनकी नेतृत्व क्षमता को लेकर उनकी
अपनी ही पार्टी के लोगों को शक है । नेतृत्व सृजन के लिए भी होता है और विध्वंस के
लिए भी; किसी को आगे बढ़ाने के लिए भी होता है और किसी
की टांग खींचने के लिए भी । ध्यान से देखा जाए, तो उन्होंने
प्रधानमंत्री की टांग को मजबूती से पकड़ रखा है और उसे अनवरत खींचने के उपक्रम में
लगे हुए हैं । क्या यह उनकी नेतृत्व क्षमता का सुबूत नहीं है ?
बाबा पर शक करना देश पर शक करना है और देश पर
शक नहीं किया जाता ।
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