घर में आने वालों का ताँता लगा हुआ था । किसी
के हाथ में गले में डालने के लिए फूलों की माला थी, तो किसी के हाथ में थमाने के
लिए पुष्पगुच्छ । कोई चमकीले कागजों से आवरणबद्ध अपनी पसंद के उपहार लाया था, तो
कोई यूँ ही आ खड़ा हुआ था...खाली हाथ, मगर मन के कोने में कई ऐसे शब्द सजने-सँवरने
लगे थे, जो किसी को विभूषित करने के काम आते हैं ।
सुबह से शाम हो आई थी, मगर आने वाले थे कि
रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे । हालांकि संख्या तरल होती गई थी । शाम का
झुरमुटापन बढ़ता गया था और लोगों का छिटपुटापन भी । लोगों की इतनी रेलम-पेल के
बावजूद घर के सदस्यों का दिन हँसी-खेल में बीता था । मुस्कान की मेल पूरे दिन
चेहरे की ट्रैक पर भावी बुलेट-सी दौड़ती रही थी । समाज में सम्मान का सेंसेक्स अचानक
उछल गया जो था । हैसियत की हनक तो उसी वक्त अपने तंबू-कनातों के लिए खूँटे गाड़ने
के काम में लग गई थी, जब वह सूचना आई थी ।
सूचना सुख और खुशी का वाहक बन कर आई थी ।
शर्मा जी को सरकार की ओर से आदर्श शिक्षक घोषित किया गया था । शर्मा जी से अधिक
उनके परिवार वाले खुश थे । बैठे-बिठाए रुतबे में असंख्य गुना वृद्धि हो गई थी ।
परिवार वालों की खुशी का एक और भी कारण था...शर्मा जी को प्राप्त हुआ दो वर्ष का
सेवा-विस्तार । दो वर्ष का अतिरिक्त वेतन...मतलब दो वर्ष और मौज-मस्ती के । पेंशन
तो टेंशन ही लाएगा । जो मिलेगा, वह कितना काम आएगा । बच रही बेटी की शादी,
दवा-दारू के लिए अस्पताल को चंदा, छीजते शरीर के लिए पौष्टिक खुराक, अब तक दमित
तीर्थाटन की इच्छा, मंदिरों में अनगिनत बकाए रह गए चढ़ावे तथा और भी बहुत कुछ-इनका
सामना बाकी परिवार वालों के लिए इतना आसान भी तो नहीं था ।
लोगों की आमद खत्म होते ही शर्मा जी
ड्राइंग-रूम से निकल कर अपने कमरे में आ गए । कुछ समय बाद भोजन भी आ गया था उनका ।
अनमने भाव से एकाध रोटी खाकर थाली को टरका दिया था । घर खुशी से लोट-पोट था, पर
उनके चित्त में खोट की चोट आकार लेने लगी थी । दिल की धड़कन बढ़ चली थी । बिस्तर
पर लेटने का कोई लाभ न हुआ । नींद अपने लोक में जिद्दी बन अड़ी रही । वह उठकर
खिड़की तक चले आए । बाहर तेज ठंडी हवा चल रही थी । अचानक एक झोंका उनसे टकराया और
मन में छिपे रहस्य की गाँठ को खोलता चला गया ।
उस दिन पहली पेशी थी छुटके शिक्षा अधिकारी के
यहाँ । यह पेशी अधिकारी के घर पर ही हुई थी । उसी ने बुलवाया था । उन्हें देखते ही
बोला, ‘आदर्श-वादर्श बनना है कि नहीं आपको...आदर्श बनने की बात करके एकदम्मे से
भूमिगत काहे हो गए इधर हम कलम-दवात लेके डेढ़ किलो मक्खियां मार चुके हैं ।
गणेश-पूजन के लिए क्या आपके पूर्वजों को न्योतना पड़ेगा?’
‘नहीं सर, हमीं करेंगे गणेश-पूजन ।’ वह
हड़बड़ाते हुए बोले थे, ‘आज्ञा दीजिए, क्या-क्या तैयारी करूँ उसके लिए ।’
‘भइये, फल-फूल तो लाओगे ना या...?’
‘नहीं-नहीं सर, आप आज्ञा तो दीजिए ।’ अपनी
ऊर्जा समेटते हुए उन्होंने कहा था ।
‘वैसे तो हम अन्य लोगों से चालीस पुष्प
मंगवाते हैं, पर चूँकि आप बुजुर्ग हैं, अतः तीस पुष्प ही यहाँ समर्पित कर दीजिए ।’
कहते हुए उसकी हँसी रहस्य के आवरण में लिपटती चली गई थी ।
‘पर सर, तीस फूल कुछ ज्यादा...’
‘निकलिए आप ।’ वह बीच में ही बोल पड़ा था, ‘आप
जैसे लोगों की स्तुति लिखकर मैं अपने कलम को खोटा नहीं कर सकता ।’
इसके बाद उनके रजामंद होने पर ही उन्हें आदर्श
बनाने की नींव पड़ी थी । उस अधिकारी ने अपने स्तर से लिख-पढ़कर फाइल को आगे बढ़ा
दिया था । कुछ ही दिनों के बाद उन्हें जिले के शिक्षा अधिकारी के दरबार में
उपस्थित होने का हुक्म प्राप्त हुआ था । वहाँ सामना अधिकारी के स्टेनो से हुआ था ।
उसने एक साँस में बता दिया था ‘कि उन्हें आदर्श बनाने के लिए साहब जबर्दस्त
परिश्रम कर रहे हैं । आदर्श बनना या बनाना परिश्रम की मांग करता है । गुण-गान के
लिए अच्छे शब्दों की खातिर साहब कई ज्ञान व समांतर कोषों को छान रहे हैं । परिश्रम
भूखे पेट नहीं होता । भूख मिटाने के लिए अधिक नहीं, बस पचास ठो कउनो फल की दरकार
होगी । कल हमको फल रिसीभ करवा दीजिए, परसों आपकी फाइल रिलीभ करवा दूँगा साहब से
टंच करवा के । ऐसा टिप्पणी होगा कि फाइल एकदम मंडले पर जाकर रुकेगी ।’
इसके
बाद मंडल की तीर्थ-यात्रा भी उन्हें करनी पड़ी थी । उनकी फाइल को देखते ही अधिकारी
ने कहा था, ‘वैसे तो आपकी उम्र आदर्श शिक्षक बनने लायक हो चुकी है, पर वो क्या है
कि अभी आप चवन्नी जितना आदर्श ही बन पाए हैं । अकेले अठन्नी आदर्श हम बना देंगे
आपको । इतना अधिक आदर्श एकसाथ बनने के लिए आपको पहले की भाँति अपना आदर्श काम जारी
रखना होगा । बल्कि यूँ कहें कि आपको पहले से अधिक आदर्श कर्म हमारे सामने प्रस्तुत
करना होगा ।’
अपना आदर्श कर्म अधिकारी की दराज में प्रस्तुत
करते ही उनकी फाइल को पंख लग गए । वह किसी
अंतरिक्ष यान की रफ्तार से राजधानी जा पहुँची । पीछे किसी ट्रेन ने उन्हें भी
राजधानी पहुँचाकर ही दम लिया । वहाँ उपस्थित पैनल के एक अधिकारी ने निशाना साधा था
। वह मारक अंदाज में बोला, ‘आपको आदर्श शिक्षक क्यों कहा जाए?’ ‘क्योंकि हम आदर्श
हैं ।’ ‘गलत, आपको एक मौका और दिया जाता है अपना जवाब सुधारने के लिए ।’
एक पल के बाद इनके मुँह से निकला था, ‘क्योंकि
हम बारह आने आदर्श बन चुके हैं । गुड, अ वेरी प्रैक्टिकल आंसर ! आपका आत्मविश्वास आपके
आदर्श का सबूत है । निश्चय ही आप सोलह आने आदर्श बनेंगे । अब आपको आदर्श बनने से
कोई नहीं रोक सकता ।’
‘कब तक खड़े रहोगे खिड़की पर?’ अचानक आई पत्नी
की आवाज ने उन्हें वापस आज में लाकर पटक दिया था । बिस्तर पर लेटने के बावजूद नींद
नहीं आई थी । अपनी ही नजर में गिरने की यह शायद पहली प्रतिक्रिया थी । पत्नी की
प्रेमपूर्ण नजर उन्हें आकाश की ऊँचाई में लिए जा रही थी, जबकि उनकी अपनी नजर पाताल
की असीम गहराइयों को खोजने में निमग्न थी ।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 'दो सितारों की चमक से निखरी ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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