जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

उल्लूगीरी के हवाले भविष्य–निर्माण का सपना



         

    ʻ पास ʼ के जंगल में काफी आपाधापी है । महाराज सियार की सरकार हरकत में है । भविष्य–निर्माण उसके एजेंडे में सबसे ऊपर है । महाराज सियार अपने राजसिंहासन पर यों तो चिपक कर बैठते हैं, किन्तु इस वक्त पता नहीं क्यों, पहलू पे पहलू बदल रहे हैं । शायद उन्हें अपने मनपसंद किसी खबर का इंतजार है । तभी खबरी खरगोश दरबार–ए–खास में प्रवेश करता है । ʻ महाराज की जय हो ʼ, घुटनों तक झुकते हुए महाराज के प्रशस्ति–गान को आगे बढ़ाता है, ʻजो औरों ने नहीं किया, वह महाराज ने कर दिखाया ।ʼ
    ʻअरे कुछ फूटेगा भी या यूँ ही पहेलियां बुझाता रहेगा ।ʼ प्रधानमंत्री लकड़बग्घा की बेचैनी सतह पर आ जाती है ।
    ʻ महाराज, गुरुकुल और आश्रम गुलजार हो उठे हैं । गुरुओं का बाना पहन उल्लूगण आपके विकास का ताना–बाना बुनने को पहुँच गये हैं । योग्यता को तो सभी पूछते हैं, परन्तु अयोग्यों की सुध लेकर आपने मिसाल कायम कर दी है । युग–युगांतर तक लोग आपका नाम लेने को विवश होंगे ।ʼ
    ʻपर महाराज !ʼ एक नेता उठ खड़ा होता है और झुकते हुए अपनी बात रखता है,ʻ गुरू के रूप में उल्लू ! क्या इसमें विरोधाभासी विचित्रता नहीं है ʼ
    ʻविचित्रता तो आपमें है नेताजी ।ʼ महाराज सियार लानत भरे स्वर में कहते हैं, ʻनेता होकर आप ताने मारते हैं । निश्चय ही आपकी दूर की दृष्टि बहुत कमजोर है । आप भविष्य में भला क्या और कैसे ताक सकते हैं !ʼ
    ʻमहाराज !ʼ प्रधानमंत्री बीच में घुसते हुए कहते हैं, ʻनिश्चय ही कोई ऊँची सोच आपकी शाही खोपड़ी में हिलोरें मार रही है । क्या दरबार का सौभाग्य इतना भी नहीं कि वह महाराज के मुख–कमल से भविष्य के राज की बात सुन सके ʼ
    अवश्य है प्रधानमंत्री जी । उल्लू को दिन में उचित–अनुचित कुछ भी दिखाई नहीं देता । वह हमारे हर इशारे को चोंच उठाकर स्वीकार करता है । रात में उसे दिखता भी है तो बाकी जानवर तो उस समय नींद में ही होते हैं । उल्लू अपने शिष्यों को अपना ही गुण प्रदान कर सकता है । अगर हमें अपना भविष्य–निर्माण करना है, तो हमें उल्लुओं की सख्त जरूरत है । सोचने समझने वाले जानवर हमारे भविष्य के सपने को पलीता लगा सकते हैं ।ʼ
    ʻपर हुजूर, हंस में क्या बुराई है वह गुरू के लिए अर्ह सारी योग्यताएं रखता है ।ʼ एक और नेता एक और प्रश्नवाचक चिह्न को दरबार में ला खड़ा करता है ।
    ‘बुराई न केवल हंस में है, बल्कि आप में भी है नेताजी । यह बुराई आप में न होती, तो शायद आज आप मंत्री पद का सुख लूट रहे होते ।ʼ महाराज सियार की क्रोधाग्नि भड़क उठती है । वे ऊँची आवाज में कहते हैं, ‘हंस की बुराई सुनना चाहते हैं, तो सुनिए । हंस नीर–क्षीर विवेकी होता है । वह पानी और दूध को अलग कर देता है, जबकि हमारा सत्ता का धंधा दूध में पानी, बल्कि पानी में दूध की मिलावट पर टिका हुआ है ।ʼ
    ‘वाह हुजूर वाह, आपने तो सत्ता का दर्शन ही निचोड़ कर रख दिया ।ʼ प्रधानमंत्री के मुँह से बेसाख्ता निकल पड़ता है । वे आगे कहते हैं, ‘हंस सतयुग के हो सकता है गुरू रहे होंगे, पर कलयुग के गुरू तो उल्लू ही होंगे ।ʼ

    महाराज सियार प्रसन्न मुद्रा में सिर हिलाते हैं । खबरी खरगोश अपने मिशन पर निकलता है ।

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