उस दिन एक पुराने पड़ोसी से अचानक मुलाकात हो गई । वे काफी तेजी में थे ।
बहुत समय के बाद बिहार शिफ्ट हो रहे थे । हमने मिलते ही पूछा—फिर बिहार चल दिए ? अभी यह शहर चेन्नई थोड़े न बना है कि
बारिश से घबराकर...
अरे, नहीं-नहीं भाई, यह शहर तो बहुते ठीक है, पर क्या है कि बिहार
बहुत-बहुत ठीक होने वाला है । इतना कहकर वे फिर सामान समेटने लगे ।
ऐसा क्या, कोई चमत्कार होने वाला है क्या ? मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी । वे हँसते
हुए बोले—चमत्कार होने वाला नहीं, हो गया है । जैसे समोसे को आलू की आदत लग चुकी
है, वैसे ही बिहार को लालू की लत पड़ चुकी है ।
पर लालू से चमत्कार का क्या रिश्ता ? मैंने पूछने को तो पूछ लिया, पर पूछने
के बाद लगा कि कुछ गलत पूछ लिया । उन्होंने भी कुछ अजीब सा चेहरा बनाया, पर
नियंत्रित स्वर में बोले—लालू चमत्कार का ही दूसरा नाम है । उनके आने से रोजगार का
सेंसेक्स रातोंरात आसमान पर जा पहुँचा है ।
वह कैसे, क्या लालू रोजगार बाँटने वाले हैं ? मैंने फिर एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछा
। रोजगार बाँटने का काम मोदी जैसे
छोटे-मोटे लोग करते हैं । लालू के तो आने मात्र से रोजगार बढ़ जाता है । उनकी भाषा
में गर्व की मिश्री घुलने लगी थी ।
मैं कुछ समझा नहीं, कृपया साफ-साफ बताइए तो...
मेरी अज्ञानता पर अब उन्हें मजा आने लगा था । वे एकदम साफ स्वर में बोले—धंधा
दो तरह का होता है भाई । एक दिन के उजाले वाला और दूसरा रात के अंधेरे वाला ।
कहते-कहते उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभर आई ।
पर वहाँ नीतीश कुमार भी तो हैं । ऐसा कहकर उनकी मुस्कराहट पर ब्रेक लगाने
की कोशिश की मैंने, जिसे उन्होंने तुरन्त असफल कर दिया । डबल मुस्कराहट के साथ
बोले—वे अपनी जगह हैं, लालू अपनी जगह । दिन का जिम्मा उनका, रात का जिम्मा इनका ।
पर सुशासन और विकास का क्या होगा ? जब सुशासन
ही नहीं होगा, तो विकास कैसे आगे बढ़ेगा ?
सुशासने के लिए नीतीश कुमार हैं । विकास लालू
के हाथ में है । आप का समझते हैं कि मोदी की तरह चार ठो व्यापारी लोगों का विकास
कर दिया, तो हो गया विकास ? विकास माने, गरीब-गुरबा का
विकास...हर हाथ को काम । बिहार के विकास के लिए बारह घंटा नहीं, चौबीसों घंटा काम
का जरूरत है और इस बात का भी जरूरत है कि बाहर रह रहा बिहारी लोग वहाँ लौटने के
बारे में यथाशीघ्र सोचे ।
बिहार में रोजगार पर क्या अब भी कोई संशय शेष
रहना चाहिए ?
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