लगता है आपने वापस कर ही दिया – पड़ोसी ने अचानक दस्तक दी । हाँ जी, अखबार तो कब का
वापस कर दिया । मैंने तपाक से जवाब दिया ।
अरे भई, मैंने
अखबार की बात कब की...मैं तो सम्मान वापसी की बात कर रहा था ।
अच्छा, आप
सम्मान की बात कर रहे हैं । मगर उसे कैसे वापस करूँ ? वह तो मेरे वश में ही
नहीं है ।
क्या मतलब...मैं कुछ समझा
नहीं ? पड़ोसी ने अज्ञानता के भाव दर्शाए - आप के पास रखी चीज आप
ही के वश में नहीं है ।
वो क्या है
कि...मैंने समझाने की कोशिश की – पिछले महीने बेटे की शादी की थी । कुछ आम लोगों
को ही बुलाया था उसमें । मेरी इस हरकत पर सारे खास लोग जल-भुन गये और उन्होंने
मुझे परंपरागत गालियों से सम्मानित कर डाला । अब आप ही बताइए...
पड़ोसी बीच में
ही टपक पड़े – मैं उस सम्मान की बात नहीं कर रहा । सम्मान मतलब...जो आपने पढ़ाई,
कमाई, लिखाई के दौरान जुगाड़ के दम पर लपका हो । आजकल सम्मान वापसी नामक एक यज्ञ
का आयोजन किया गया है, जिसमें सभी बुद्धिजीवियों को अपनी-अपनी आहुतियाँ डालनी हैं
।
समझ गया...आप
क्या कहना चाहते हैं । पढ़ाई के दौरान स्कूल में प्रथम आने पर एक सम्मान पत्र मिला
था, पर उस पर चना-चबेना खाकर मेरे बच्चों ने कब की सम्मान की ऐसी-तैसी कर डाली थी
। कमाई के दौरान एक बार जबर्दस्त छक्का मारा था । दरअसल इसके पहले इक्की-दुग्गी ही
मारा करता था । इस शानदार प्रदर्शन से बॉस इतने खुश हुए कि मुझे अपने घर पर ही
बुला डाला । उन्होंने मुझे समझाया कि एक स्कवायर कट पर ही नीचे वाले का हक बनता है...बाकी
तो सब माया ऊपर वाले की है । बिना व्यवधान उनका ज्ञान हजम कर लेने पर अगले दिन भरे
दफ्तर में प्रशस्ति पत्र दिया गया । कार्य के प्रति निष्ठा का इनाम अवश्य मिलता है
।
अब रही बात
लिखाई की, तो लिखे जा रहा हूँ । नक्कारखाना में ज्यों तूती, होती मुझे वही अनुभूति
। इतना सुनते ही उन्होंने मुझ पर लानत की निगाह डाली और चले गये ।
सत्य
है...सम्मान वापसी के इस यज्ञ में अपनी तरफ से आहुति डालने के लिए मेरे पास कुछ
नहीं है । अपनी अकिंचनता और बेचारगी पर शर्मसार हूँ मैं ।