जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 17 जनवरी 2017

दंगल से मंगल

                       
erms.rcnc.org से साभार
  
     तीसरी बार उन फटेहाल, अधनंगों को आधा दर्जन पुरानी साड़ी-धोती खैरात-स्वरूप बाँटते ही मुझे आत्म-ज्ञान की प्राप्ति हो गई । मुझे लगा कि मैं भी खैरात बाँटकर लोगों का विकास कर सकता हूँ । कर क्या सकता हूँ, बल्कि मैंने तो कर दिया है । यह कमाल मैंने पूरी तरह स्वतंत्र रहकर किया है । आज न तो बापू की छत्रछाया थी मेरे पीछे और न ही उनका कोई मुलायम निर्देश । घर पहुँचते ही मैंने ऐलान कर दिया कि अब घर के सत्ता-सिंहासन पर केवल मेरा ही जूता आसीन होगा ।
    ‘किसी को कोई आपत्ति?’ मैंने अपनी निगाह घर के सदस्यों पर दौड़ाते हुए पूछा ।
    ‘मुझे आपत्ति है ।’ बापू की आवाज उभरी । वह सामने आते हुए बोले, ‘सत्ता पर मेरा अधिकार है । मैं उसका हस्तांतरण ही नहीं करूँगा ।’
    ‘मुझे उसकी परवाह नहीं है ।’ इस वक्त मेरा मजबूत आत्म-विश्वास बोल रहा था । उनकी आँखों में आँखें डालते हुए मैंने कहा, ‘इस काम के लिए मैं दंगल भी कर सकता हूँ आपसे ।’
    बापू का मुँह खुला तो खुला रह गया । वह उसी अवस्था में रहते हुए बोले, ‘तू मुझसे दंगल करेगा? अरे कपूत ! तू तो इतना भी नहीं समझता । कहीं दंगल से मंगल की कामना की जा सकती है भला !’
    ‘कलयुग का यही तो करिश्मा है बापू ।’ मैं पूरी तरह संयत रहते हुए बोला, ‘अब दंगल से ही मंगल होता है । आपने देखा नहीं, उधर राजधानी में क्या हुआ? मंगल के लिए ही तो सारा दंगल मचाया गया । बाप के खिलाफ खड़ा होना...मतलब मजबूत होकर उभरना । बाप के खिलाफ मुलायम होकर खड़ा होने से नहीं, बल्कि अखिल मजबूती से खड़ा होने पर ही इमेज-बिल्डिंग होती है ।’
    ‘पर वह राजनीति का अखाड़ा है । परिवार में उन राजनीतिक बातों का कोई औचित्य नहीं ।’ बापू ने अगला दांव चलते हुए कहा ।
    मैं भी उसी बापू का बेटा था । दांव की काट करते हुए बोला, ‘जब राजनीति में परिवार हो सकता है, तो परिवार में राजनीति क्यों नहीं?’
    ‘पर परिवार में सबकी राय ली जाती है, सबके हित के लिए समान भाव से काम किया जाता है । इसी को परिवारवाद कहते हैं । समाजवाद का मूल भी यही है ।’
    ‘मैं भी उसी समाजवाद को मजबूत करना चाहता हूँ...आपके मार्गदर्शन में । मैं चाहता हूँ कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आप अपनी सत्ता का हरण करने में मेरा मार्ग-दर्शन करें ।’
    और अगले ही पल दंगल की प्रभावी स्क्रिप्ट-राइटिंग के लिए मैं परिवार के सदस्यों की एक आपात बैठक आहूत करता हूँ ।

मंगलवार, 10 जनवरी 2017

नेता तो सेफ हैं...

                
    चाय की अड़ी पर इस समय भी तीन लोग अड़े हुए थे । सामने की सड़क लगभग वीरान हो चुकी थी । कभी-कभार इक्के-दुक्के लोग ही आते-जाते दिख जाते थे । कोयले की अतिरिक्त खुराक न मिलने के कारण अंगीठी अब ठंडी हो चली थी, पर शीशे के गिलासों में उड़ेली गई चाय पूरी तरह गरम थी । जो बात बटेसर के पेट में पिछले कई दिनों से खदबदा रही थी, गरम चाय पड़ते ही वह भाप बन गई और मुँह से उसके निकलने लगी, इ जउन नोटबंदी का फइसला रहा, उ एकदम्मे फुस्स साबित हुआ कउनो फुसफुसिया पटाखा के माफिक ।...है कि ना?’
    ‘इ बटेसरा तो हरदम्मे फुसफुसाय रहता है ।’ लुटई पहलवान से रहा न गया । चाय का एक घूँट भरते हुए वह बोले, ‘एकरा कान पर बम्मो फटे, तो फुस्से सुनाई देता है । अरे उ कश्मीर में पत्थर चलना बंद हो गया और इधर नक्सली भाई लोग गोली चलाना छोड़कर नोट चलाने में लग गए । इ कउनो कम धमाका है कि इन लोगन की बोलतिए बंद हो गया ।’
    ‘एक और बात हुई है ।’ पंडित तोताराम भी उछल पड़े बहस में । चाय का आखिरी घूँट सुड़कते हुए बोले, ‘दाग धुल गया है नेताओं का ।’
    ‘का बात बोले पंडिज्जी...नोटबंदी कउनो बैतरणी रही कि पाप धुल गया ।’ इस बार दुकान स्वामी चनेसर की आवाज आई । वह सामान को समेटने में लगा हुआ था ।’
    ‘नोटबंदी का इतना बड़ा झमेला हुआ, कोई नेता पकड़ा गया क्या? जो भी पकड़े गए, वे नेता नहीं थे । तुम्हीं बताओ बटेसर, इसका क्या मतलब निकलता है?’
    ‘मतलब तो जरूरे कछु निकलना चाहिए ।’ बटेसर अपना कान खुजाते हुए बोला, ‘आप ही काहे नाहीं बताय देते पंडिज्जी ।’
    ‘मतलब तो एकदम साफ है । नेताओं के पास दो नंबर की कोई कमाई नहीं । होती तो पकड़े नहीं जाते? लोगों ने नाहक ही उन्हें दागदार मान रखा है ।’
    ‘ना-ना, इ बात तो कउनो मूरख भी नहीं मानेगा ।’ लुटई पहलवान खम ठोंकते हुए बोले, ‘नेता लोग बहुते पहुँचे हुए जीव हैं । बटेसरा के इ बात तो माननी पड़ेगी कि इन लोगन ने नोटबंदी को एकदम्मे फुस्स कर दिया ।’
    ‘पहलवान की बात को मानना मेरे लिए संभव नहीं है, क्योंकि नेताओं की बिरादरी कितनी भी चतुर क्यों न हो, सौ-पचास नेता तो जरूर लपेटे में आ जाते । का कहते हो बटेसर?’ पंडित जी ने अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए बटेसर को निहारा ।
    ‘बटेसरा से का पूछते हैं? हम जवाब देते हैं आपको ।’ लुटई पहलवान लगभग तैयार बैठे थे जवाब देने के लिए । वह बोले, ‘आमे आदमी पकड़ में आता है । जउन पकड़ में ना आए, नेता वही होता है । आपने इन्हें आम आदमी मानने की गलती कर दी ।’
    ‘फिर भी क्या आप लोगों को अजीब नहीं लगता, जो लुटई पहलवान कहे जा रहे हैं? अगर नेता काला-काला कर रहे होते, तो इस धुलाई अभियान में कोई-न-कोई दाग तो अवश्य छोड़ जाते । मगर ऐसा हुआ क्या? इसलिए मैं नहीं मानता कि जहाँ नेता होता है, वहाँ दाग भी होता है । कम से कम नोटबंदी ने इस झूठे आरोप को सदा के लिए नकार दिया है । अब निश्चिंत होकर कहा जा सकता है कि यह देश नेताओं के हाथ में सुरक्षित है ।’
    पंडित जी के चेहरे को देखकर लुटई पहलवान को ऐसा लगा, जैसे वे अपने ही तर्क पर मुग्ध हो उठे हों । वह भी कुछ कम न थे । नहले पर दहला मारते हुए बोले, ‘हमारी समझ से तो नोटबंदी का सबक ये है कि देश और उसकी व्यवस्था नेताओं के हाथों सुरक्षित हो या न हो, किन्तु नेता देश और उसकी व्यवस्था के हाथों अवश्य सुरक्षित हैं ।’
    ‘का बात कहा पहलवान ! आपने तो पंडिज्जी का मुँहे बंद कर दिया ।’ इतना कहते ही चनेसर अपनी दुकान को बंद करने लगा था ।
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