जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

वे हमें, हम उन्हें पीटते हैं

                  
   रेत की तरह समय के हाथ से निकल जाने के बावजूद महाराज सियार आज विशेष प्रसन्न हैं । पूरे राज्य से मंत्रियों के माध्यम से आह्लादकारी और जोश भरने वाली खबरें आ रही हैं । समाजवाद ने हर जगह अपने खूँटे गाड़ दिए हैं और बाकी सभी वादों की खटिया खड़ी हो गई है । जहाँ देखिए समाजवाद की घनी छाया, जहाँ देखिए समाजवादी फल । विधवा पेंशन सधवा पा रही है, विधवा भी । वृद्धावस्था पेंशन मृतक पा रहे हैं और इनकी कृपा से जीवित वृद्ध भी । कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी मंत्री और उनके परिजन बनते हैं तथा सामान्य जन भी । अन्त्योदय तथा गरीबी रेखा से नीचे का लाभ पैसे वालों को मिलता है और ठनठन गोपालों को भी । राशन की राहत बड़े अफसरों को मिलती है और खाली पेट वालों को भी । इनमें पहले आने वालों के लिए लाभों की गारन्टी है, बाद में आने वालों के लिए वैकल्पिक ।
   महाराज के सामने खबरों की खीर अभी परोसी ही जा रही है कि तभी खबरी खरगोश का आगमन होता है । ‘महाराज की जय हो’, कहते हुए वह घुटनों तक झुकता है और अपनी बात आगे बढ़ाता है-हुजूर, खबरें अच्छी नहीं हैं । जान की अमान पाऊँ, तो बयान करूँ ।
   बेधड़क कहो खबरी । हम कुछ भी सुनने को तैयार बैठे हैं ।
      हर तरफ अपराध-ही-अपराध है । अपराधियों के लगाम पूरी तरह टूट चुके हैं । उनको सख्ती से लगाम...
   वह तो ठीक है खरगोश, पर हम ऐसा कैसे कर सकते हैं । आखिर अपराधी भी तो हमारे ही राज्य के नागरिक हैं ।
   महाराज, आपको ऐसा करना होगा । क्या आपको पता है कि पिछले कुछ समय से क्या हो रहा है ।
   पहेलियाँ न बुझाओ खबरी । साफ-साफ बताओ कि क्या देखकर आए हो । महाराज भौंहें तनिक टेढ़ी करते हैं ।
   पुलिस पिट रही है हुजूर । अपराधी अब उनकी नियमित धुलाई करने लगे हैं ।
   क्या सचमुच, महाराज उछल पड़ते हैं । खबरी, इस खबर में तनिक भी असत्य तो नहीं । महाराज की आवाज में उत्तेजना के साथ खुशी की मिश्री घुलने लगती है ।
   सौ टंच सही बात है हुजूर, पहले आपके नेता-मंत्री सीख दिया करते थे, अब अपराधी ऐसा करने लगे हैं ।
   महाराज अपनी अंगूठी उसकी तरफ उछाल देते हैं । ये लो मेरी तरफ से । तुम नहीं जानते कि तुमने कितनी बड़ी खबर दी है । अंतत: समाजवाद पूरी तरह सफल रहा । पुलिस पीटती है, तो अपराधी को भी हक है उन्हें पीटने का । हमारा समाजवाद सबको एक नजर से देखता है ।

   खबरी खरगोश अपना सा मुँह लेकर खड़ा रह जाता है । महाराज सियार आँखों को बंद करते प्रतीत होते हैं ।

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

लालच की प्यास


   साधो, बचपन से यही पढ़ा और सुना है कि लालच नहीं करनी चाहिए, क्योंकि लालच एक बुरी बला है । लालच की प्यास मिट जाए, ऐसे उपाय सदा करते रहना चाहिए । पर इधर एक कंपनी का विज्ञापन धमाल मचाए हुए है । कंपनी अपना शरबत बेचने के लिए चाहती है कि लोग लालच की अपनी प्यास को बुझने न दें । वैसे चिलचिलाती धूप की धमकी और धक्का खाए कितने आम इंसान ऐसे होंगे, पता नहीं, जो प्यास को बुझने न देने की हिम्मत रख पाते होंगे । वे तो प्यास के उफान मारते ही सामने ब्लैक एंड व्हाइट या कलर जो भी मिले, गटक लेते हैं । गटकने की एक बड़ी वजह उसका सस्ता होना भी होता है । कंपनी के शरबत तक लालच की प्यास को थर्मामीटर के पारे की तरह चढ़ाने के लिए उनके पास न तो समय होता है और न ही आर्थिक ऊर्जा । कंपनी के शरबत के लिए जेब में अच्छी और टिकाऊ ऊर्जा का होना अनिवार्य शर्त है ।
   वैसे लालच की प्यास बुझ गई होती, तो परम विद्वान रावण न तो सीताजी का अपहरण करता और न ही खुद सहित अपने सम्पूर्ण वंश के विनाश का कारण बनता । लालच उसके लिए बुरी बला साबित हुई । महाभारत की लड़ाई को कोई जानता तक नहीं, अगर दुर्योधन ने लालच की अपनी प्यास बढ़ाई न होती । उसने लालच की प्यास को इतना बढ़ाया कि सुई की नोंक के बराबर भी जमीन देना असहनीय हो गया । लालच की उसकी प्यास उसे मृत्यु तक घसीट कर ले गई ।
   पर आज के समय में लालच एक कला अवश्य बन गई है । राजनीति कभी समाज की सेवा का साधन शायद रही हो, पर आज वह पैसा बनाने और देश को दुहने की एक कला है । लालच की कला इतनी प्रभावी है कि उसने राजनीति को भी एक कला में बदल दिया । चारा घोटाले में भैंसों को स्कूटर से ढोया जाना क्या कला की अनुपम प्रस्तुति नहीं थी । लालच की प्यास बुझ गई होती, तो यह महान कलाकारी देखने को कैसे मिलती ? अपना देश महान घोटालों से वंचित बना रहता और वह दुनिया की नजरों में नहीं आ पाता, यदि लालच की प्यास न होती । घोटालों के वृहद स्वरूप ने यही साबित किया कि लालच की प्यास आदमी को न केवल कलाकार बनाती है, बल्कि लोमड़ी-चातुर्य का दान देकर प्रतिभावान भी बनाती है ।
   सुना है कि नेताओं को यह विज्ञापन खूब भा रहा है । उन्होंने तो शरबत पीना भी शुरू कर दिया है, ताकि लालच की प्यास और भड़के । लकीर का फकीर होने से विकास नहीं होता । लालच अब बला नहीं, एक कला है ।


मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

उधर अच्छे दिन , इधर बुरे दिन

          
      काम करने वाला बाबू नहीं हो सकता । बाबू तो उसे कहते हैं जो काम नहीं करता । आप पूछ सकते हैं कि काम नहीं करता, तो खाता कैसे है । यही तो इस जीव की खूबी है जनाब कि काम नहीं करता तो ही खाता है । खिलाने वाले इसे काम न करने पर ही खिलाते हैं । बहरहाल बाबू की इन सच्चाईयों के बीच एक सच्चाई यह भी आ रही है कि दिल्ली वाले बाबू काम करना चाहते हैं । उनमें काम करने के लिए होड़ लगी हुई है ।
   यह सच्चाई हमारे दफ्तर तक आ पहुँची है । बाबू हताशा–निराशा के भँवर में डूब–उतरा रहे हैं । बड़े बाबू का तो हाल ही बेहाल है । उन्हें लगने लगा है कि खतरा एकदम सिर पर आन बैठा है । नतीजे दिखाई भी देने लगे हैं । पहले फाइल जितनी भारी होती थी, काम उतनी ही तेजी से सरकता था, पर अब हल्की ही सरकानी पड़ रही है । फाइल स्वामी बाद में भारी करने की मौन स्वीकृतियां देने लगे हैं । मौन स्वीकृति का क्या, भला इसकी गवाही देने कोई आया है आज तक !
    आज दोपहर हो आई है और बड़े बाबू का गला सूखा हुआ है । इस समय तक तो मिनरल वाटर और स्प्राइट से कितनी बार गला तर हो जाया करता  था । मगही पान के बड़े–बड़े बीड़े मुँह में ठसाठस रहते थे अलग से । उनकी दशा देख चपरासी दफ्तर का ही पानी रख गया है गिलास में । शाम का समय अभी से उनके दिमाग में उतरने लगा है । कैसे कर पाएंगे सामना घर में बीवी का । उसकी आवाज में मिर्ची की गन्ध घुलने लगी है ।
    उधर एक और सच्चाई झाँकने लगी है । ज्योतिषियों की चाँदी हो आई है । उनके यहाँ बाबुओं की ये लम्बी कतारें लगी हुई हैं । ग्रह–दोष निवारण के लिए सभी पण्डित जी के शरणागत हैं । ग्रह–नक्षत्र बोलने लगे हैं । शनि अत्यन्त वक्री होकर अमंगल भाव के साथ बाबुओं के मंगल स्थान में आ बैठा है । पाँच साल तक उसके हिलने–डुलने की कोई संभावना नहीं है । जातकों को सलाह है कि सवा ग्यारह रत्ती का कठोर काम का पत्थर लोहे की अंगूठी में जड़कर धारण करें । माया की तरफ कदापि नजर न डालें । ऐसा करना उनके लिए भयंकर अमंगलकारी होगा ।
   आने वाले अच्छे दिनों में बाबुओं की ऐसी दुरावस्था ! कोई इस सच्चाई पर भी तो दया–दृष्टि डाले ।

                                                 

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

लोकतंत्र से खिलवाड़ का हक किसे है

              
       
   महाराज सियार दरबार-ए-खास में खास चर्चा का चरखा चलाने-चलवाने में मशगूल हैं । उनके सामने कई विभागों के मंत्री अपनी-अपनी कुर्सियों पर चिपके हुए हैं । बड़बड़ विभाग के मंत्री बड़बोला खान और नगाड़ा विभाग के मंत्री खास तौर से उपस्थित हैं । संभव है कि लोक इन विभागों के बारे में अनभिज्ञ हो । अत: इनके बड़प्पन की बड़ाई निहायत ही जरूरी है ।
   बड़बड़ विभाग का काम ऊल-जलूल बकते रहना है । इस काम में बड़बोला खान ने ऐसी लकीर खींच दी है, जिसके पार जाना किसी भी अन्य के लिए लगभग असंभव है । बड़बड़ करने का फायदा यह होता है कि लोक का ध्यान सदा विपक्षी की गिरेबां में अँटका रहता है और अपने पास मनमानी करने का मौका-ही-मौका होता है । नगाड़ा विभाग का काम सदा नगाड़ा बजाते रहना है, सरकार के हर उस काम के लिए, जो उसने कभी किया ही नहीं । अगर गलती से कोई काम हो गया हो, तो उसके लिए इतना नगाड़ा बजाना है कि लोक झेलते-झेलते बहरा हो जाए ।
   खैर, चर्चा का विषय राजभवन है । बड़बोला खान के अनुसार राजभवन का मुखिया लोकतंत्र से खिलवाड़ नहीं कर सकता । ऐसा करने के लिए राजभवन को किसी भी खेत से मूली सप्लाई नहीं होती । खिलवाड़ करने का एकमात्र अधिकार राजमहल को है । वोट के लिए राजा को लोक के दर पर नाक रगड़ने पड़ते हैं । अत: उसे नाकों चने चबवाने का हक सिर्फ राजा को है । इसके अलावा लोकतंत्र से खिलवाड़ करने के लिए कुछ संसाधन अत्यन्त आवश्यक होते हैं । लोक को धमकाने के लिए कर्मठ समाजसेवियों की पूरी फौज चाहिए होती है और महाराज के लकड़बग्घे इस काम के लिए सदा तैयार बैठे रहते हैं । मुर्गे की दावत हो, देशी-विदेशी की टकराहट हो, पैसे की खनक हो, अनाजों-कपड़ों-सामानों का लालच हो-इन सभी के लिए दो-नंबरी कमाई की जरूरत होती है ।
   ठीक फरमाया आपने-नगाड़ा मंत्री बात को आगे बढ़ाते हैं, अपने महाराज एक नंबर पर डटे हुए हैं, क्योंकि उनके पास दो नंबर की कमाई है । राजमहल का मुकाबला राजभवन कदापि नहीं कर सकता । मसूर की दाल खाने वाला मुँह महाराज से गलजोरी करने चला है, यह तो हद ही हो गई हुजूर !
   एक चीज और है-इस बार महाराज की वाणी गूँजती है,परंपरा भी हमारे ही साथ है । हमारे पूर्वज भी लोकतंत्र से खिलवाड़ किया करते थे । अत: यह साबित होता है कि लोकतंत्र से खिलवाड़ का विशेष  अधिकार हमारे पास है ।

   वाह हुजूर, वाह, क्या कह दिया आपने! सभी महाराज की प्रशंसा में कसीदे पढ़ते हैं और चर्चा यहीं समाप्त होती है ।

मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

ये उत्तम प्रदेश है जनाब !

                             
    साधो, उत्तम का निर्माण निकृष्ट कार्य है । उत्तम की हवाई योजना बनाना कुछकुछ अच्छा है, किन्तु उत्तमउत्तम चिल्लाना सर्वोत्तम है । यह उत्तम प्रदेश का उत्तम सुभाषित है । हर बात पर नाकभौं सिकोड़ने वाली, हर किए की बखिया उधेड़ने वाली, सरकार पर हर समय लानतमलामत भेजने वाली आम जनता उत्तम का राग भला किस तरह गा सकती है । उत्तम का ज्ञान तो सत्ता में बैठते ही हो जाता है । जहाँ उत्तमउत्तम की ही काँवकाँव मची हो, वहाँ आप यह समझने में देर मत लगाइये कि आप उत्तम प्रदेश की ठंडी एवं घनी छाँव में हैं । आइए, इस प्रदेश की उत्तमता को विभिन्न कसौटियों पर कसते हैं ।
    उत्तम कहलाने के लिए सबसे पहले शिक्षा की बात आती है । जनता को शिक्षित बनाना यहाँ की सरकार का काम नहीं है, क्योंकि अशिक्षित ही वास्तव में सरकार के काम आते हैं । अतः अशिक्षित बनाने के इस अभियान में अशिक्षित ही उत्तम साबित हो सकते हैं । इसी बात को ध्यान में रखकर सरकार लाखों अशिक्षितों को शिक्षा का सरकारी आचार्य बना रही है । इनके ऊपर लोगों को अशिक्षित बनाने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है । जनता शिक्षा से जितनी बेजान होती है, सत्ता के पाए में उतनी ही जान आती है । इस तरह जितने अशिक्षित होंगे, सरकार की मजबूती उतनी अधिक होगी और तद्नुसार मजबूत सरकार प्रदेश की उत्तमता को बनाए रख सकेगी ।
    उत्तम कहलाने की एक और कसौटी चारित्रिक स्वास्थ्य है । अक्सर सत्ता में बैठे लोगों पर यह तोहमत लग जाता है कि वे समय बीतने के साथ निठल्ले होते जाते हैं, किन्तु उत्तम प्रदेश के नेता कतई निठल्ले नहीं हैं । रामपुर से लेकर रहमानपुर तक सिर्फ जबान ही नहीं चल रही, चाकूछुरी और बन्दूक भी चल रही है । इधर कुछ मंत्री अपनी अदाकारी से जनता को मोहित करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं । एक ने हाथ उठाया है दूसरे पर, तो दूसरे ने दूसरे के जिस्म को ही उठा दिया है । सरकार चिंता में डूब गई है । उत्तम प्रदेश की यही निशानी होती है । जनता खुश है कि सरकार चिंता में डूब गई है । अब यह जरूर कुछ करेगी । सरकार को यह चिंता खाए जा रही है कि वह कैसे जनता को मूर्ख बनाए और अपने मंत्रियों को बचाए । सरकार की सक्रियता बढ़ गई है ।
    योजनाओं, सेवाओं और सुविधाओं के मामले में उत्तम प्रदेश आज की तारीख में सौ टंच खरा उतर रहा है । उत्तम योजनाएं बन रही हैं । अब यह अलग बात है कि उनके ईमानदारी से पूरा होने   की गारन्टी सरकार के पास नहीं है, पर बिजली के झटके उसके पास हैं । चुनाव बाद ही जनता का मानसिक संतुलन बिगड़ गया था । वह असंतुलित होकर सोचने लगी थी कि कहीं इस सरकार को लाकर उसने गलती तो नहीं कर दी । उसके मानसिक संतुलन को बरकरार रखने के लिए ही सरकार बिजली के झटके दिए जा रही है ।

    चुनाव के दौरान जनता ने नेताओं से सड़कों की खूब खाक छनवाई थी । अब सड़क के गड्ढों में गिरागिरा कर सरकार उनका उधार चुकता कर रही है । उत्तम प्रदेश अपनी जनता का कर्ज अपने माथे पर उधार नहीं रखता । अगर इन गड्ढों में गिरने के बाद आपने चीखने की दिलेरी दिखा दी और यहाँ की उत्तम पुलिस अपने डंडे से आपकी पीठ पर इतिहास रचने से चूक जाए तो समझिए अब आप किसी और प्रदेश की ठाँव में हैं ।
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