जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

एक नॉन-वीआईपी कुत्ते का खोना

                
   ‘क्या हुआ कुत्ते का, मिला कि नहीं अभी तक? कंपनी बाग में टकराते ही एक नव-निर्मित मित्र ने पूछा । सुबह-सुबह की सैर में एक-दूसरे की खैर पूछते-पूछते हम वाकिंग फ्रेंड बन गए थे । उनका इशारा हमारे उस कुत्ते की तरफ था, जो तीन-चार रोज पहले हमसे बिछड़ गया था । सुबह का लगभग यही समय था । अपनी दीर्घ पीड़ा मिटाने के लिए उधर घनी झाड़ियों की ओर गया था । अपनी पीड़ा मिटाते-मिटाते हमें पीड़ा दे गया । राह देखने का कोई प्रतिफल न मिला । संगी-साथियों ने बताया कि जरूर किसी ने उसे तड़ी पार कर दिया होगा । कुत्ते के लिए फिरौती मांगना तो अभी फैशन में नहीं है, अतः ज्यादा गुंजाइश है कि उसे बेच दिया जाए । यह आपके किसी दुश्मन की चाल भी हो सकती है ।
   ‘कहाँ मिला ।’ मैंने मायूसी भरे स्वर में जवाब दिया, ‘अभी तो कल जाके पुलिस ने रपट दर्ज किया है । दौड़ाते-दौड़ाते थका मारा । मुठ्ठी गर्म हुई, तब रपट दर्ज हुई ।’
   ‘कहना तो नहीं चाहता, पर कहे बिना रहा भी नहीं जाता ।’ मित्र अपना चेहरा लटकाते हुए बोले, ‘मुझे नहीं लगता कि आपका कुत्ता अब मिल पाएगा । उसे सदा के लिए भूल जाना ही आपके लिए अच्छा रहेगा ।’
   ‘पर मुझे उम्मीद है कि मेरा कुत्ता अवश्य मिल जाएगा ।’ उनके कहने के बावजूद मैंने आशा की डोर को छोड़ना उचित नहीं समझा ।
   ‘किस बूते आप इतनी उम्मीद रखते हैं? क्या आपका कुत्ता वीआईपी कोटे में आता है?’ यह कहकर उन्होंने मुझे झटका दिया ।
   ‘अजी, आप भी मजाक करने लगे । हम आम लोग ठहरे । हमारा कुत्ता वीआईपी कैसे हो गया !’ हमने अपनी स्थिति को कबूल करते हुए कहा ।
   ‘वही तो हम भी कहना चाहते हैं । उधर एक भूतपूर्व मंत्री का कुत्ता खोया हुआ है । उनकी पत्नी ने चुनौती भी दी है पुलिस को ढूँढने की, पर वह अभी तक नहीं मिला है । ऐसे में सोचिए कि आपके कुत्ते का क्या होगा ।’
   ‘बात तो ठीक है आपकी, किन्तु पुलिस तो सबकी रक्षा के लिए है ।’ मैंने प्रतिवाद करने की कोशिश की ।
   ‘लगता है आपने संविधान और कानून को ठीक से जानने का प्रयास कभी नहीं किया । पुलिस वीआईपी चीजों की रक्षा के लिए है । अगर समय बचे, तो आम लोगों पर एहसान किया जा सकता है ।’
   ‘आपका यह कहना भी ठीक है ।’ हमने उनकी बात को स्वीकार करते हुए कहा, ‘पर क्या वीआईपियों के लफड़े इतने बढ़ गए हैं कि...
   ‘बात इतनी भी नहीं है । सारे वीआईपियों की बात तो आप छोड़ ही दीजिए । पुलिस अब केवल सरकार की जागीर है । उसका काम सरकारी वीआईपी को जूते पहनाना तथा विपक्षी वीआईपी को जूते मारना हो गया है ।’
   ‘वह तो ठीक है, पर हमारा कुत्ता...’
   ‘फिर कुत्ता-रटन्त,’ वह तनिक चिढ़ते हुए बोले, ‘भूतपूर्व मंत्री को भी एहसास हो गया है कि कुत्ता उन्हें मिलने से रहा और इधर आप हैं कि कुत्ता-रटन्त किए जा रहे हैं ।’ उनके स्वर में झल्लाहट थी ।
   ‘कैसे भूल जाऊँ? कुत्ता अपना है । सरकार अपनी है । पुलिस अपनी है । सब कुछ तो अपना है ।’
   ‘भ्रम भी अपना है ।’ वह मेरे कंधे पर हाथ रखकर सांत्वना देने वाले स्वर में बोले, ‘भ्रम से बाहर निकलिए । पीड़ा से छुटकारा मिलेगा ।’
   ‘कैसे बाहर निकलूँ? पुलिस जब भैंस को ढूँढ सकती है, तो उसे कुत्ते को ढूँढने में क्या समस्या है?’
   ‘आप समस्या की बात करते हैं? समस्या एक हो, तो बताऊँ । सबसे पहले, पुलिस का काम भैंस ढूँढना ही है । दूसरे, वह भैंस ढूँढने के लिए ही प्रशिक्षित है । तीसरे, भैंस ढूँढने का उसके पास अपार अनुभव भी है । वह अपनी कुशलता, तेजी और कर्त्तव्य-निष्ठा का परिचय कई मौकों पर दे चुकी है ।’
   ‘पर मेरे कुत्ते के लिए उसकी तेजी...’
   ‘अब तो एक ही रास्ता है । पुलिस कुत्ते को खोजे, इसके लिए जरूरी है कि वह वीआईपी ही न हो, बल्कि सरकारी भी हो । आप तत्काल जुगाड़ के घोड़े दौड़ाना शुरु कर दीजिए ।’

   इतना कहकर वह अपनी राह हो लिए । मैं मूर्ख की तरह उनके पैरों से उड़ती धूल को देखता रह गया ।

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